
बड़ी खाटू रेलवे संघर्ष: हक की लड़ाई या प्रशासन की उपेक्षा?
बड़ी खाटू, नागौर। राजस्थान के नागौर जिले के बड़ी खाटू रेलवे स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव को लेकर ग्रामीणों और रेलवे विकास समिति द्वारा अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया गया है। इस प्रदर्शन की खास बात यह रही कि भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के कार्यकर्ता एक मंच पर नजर आए, जो यह दर्शाता है कि यह मुद्दा किसी एक राजनीतिक दल का नहीं, बल्कि जनता के हक से जुड़ा एक बड़ा सवाल है।
धरना स्थल पर सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए जीआरपीएफ के जवानों को तैनात किया गया है। बड़ी खाटू और आसपास के गांवों के हजारों लोग इस प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे हैं और रेलवे प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी कर रहे हैं।
बड़ी खाटू रेलवे स्टेशन का ऐतिहासिक महत्व: पूर्व प्रधान ने बताया 1952 का जिक्र
धरना स्थल पर मौजूद जायल के पूर्व प्रधान रिधकरण लामरोड़ ने रेलवे स्टेशन के महत्व को लेकर अपनी आपबीती साझा की। उन्होंने बताया कि 1952 के समय बड़ी खाटू रेलवे स्टेशन पर नियमित रूप से ट्रेनें रुकती थीं, जिससे स्थानीय लोगों को बड़ी सहूलियत मिलती थी।
उन्होंने कहा, “उस दौर में यहां से सैकड़ों यात्री ट्रेन के जरिए सफर करते थे। तब इस स्टेशन की बड़ी पहचान थी, लेकिन अब इसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है।”
उन्होंने रेलवे प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा कि यदि बड़ी खाटू को पहले की तरह ट्रेन ठहराव की सुविधा दी जाए, तो यह क्षेत्र एक बार फिर से रेलवे मानचित्र पर अपनी पहचान बना सकता है।
ग्रामीणों और रेलवे विकास समिति की चेतावनी, अगर मांगे नहीं मानी गईं तो होगा बड़ा धरना प्रदर्शन
इस धरना प्रदर्शन में बड़ी खाटू और आसपास के कई गांवों के हजारों लोग एकजुट होकर अपनी मांगें रख रहे हैं। रेलवे विकास समिति के पदाधिकारियों ने रेलवे प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्द ही उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो और भी बड़े स्तर पर धरना प्रदर्शन किया जाएगा।
समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा—”हम सिर्फ अपनी हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह रेलवे स्टेशन सिर्फ एक स्टॉप नहीं, बल्कि हजारों लोगों के रोजगार और आवागमन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यदि रेलवे हमारी मांगों को अनदेखा करता है, तो हम बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।”
आध्यात्मिक और धार्मिक पर्यटन पर असर
बड़ी खाटू केवल एक रेलवे स्टेशन भर नहीं है, बल्कि यहां कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल मौजूद हैं, जो इसे एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र बनाते हैं।
शिव बाग आश्रम के संत चंद्रपुरी, जो फ्रांस से आए हैं और कई वर्षों से इस आश्रम में सेवा कर रहे हैं, ने भी रेलवे स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव की मांग का समर्थन किया। उन्होंने कहा—”अगर यहां एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव होने लगे, तो धार्मिक श्रद्धालुओं को आने-जाने में बड़ी सुविधा होगी। इससे न सिर्फ श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी, बल्कि यह क्षेत्र आध्यात्मिक पर्यटन के रूप में भी विकसित होगा।“
संत चंद्रपुरी ने आगे कहा कि यदि रेलवे प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करता है, तो बड़ी खाटू में धार्मिक पर्यटन को काफी बढ़ावा मिल सकता है, जिससे स्थानीय व्यवसाय और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
स्थानीय लोगों का समर्थन और आक्रोश
धरना स्थल पर मौजूद स्थानीय ग्रामीणों में रेलवे प्रशासन के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश देखने को मिला। एक ग्रामीण ने कहा, की “हमारे गांव और आसपास के इलाकों में हजारों लोग ट्रेन यात्रा पर निर्भर हैं, लेकिन स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेनों के न रुकने से हमें मजबूरन बसों और निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ता है, जो महंगा और असुविधाजनक होता है। रेलवे प्रशासन हमारी समस्याओं को नजरअंदाज कर रहा है।“
प्रशासन की चुप्पी और लोगों की नाराजगी
धरना प्रदर्शन के बावजूद अभी तक रेलवे प्रशासन की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। अधिकारियों ने अब तक प्रदर्शनकारियों से कोई बातचीत नहीं की है, जिससे लोगों में नाराजगी और बढ़ रही है।
रेलवे विकास समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द सुनवाई नहीं हुई, तो वे रेल पटरियों पर बैठकर प्रदर्शन करेंगे और ट्रेनों को रोकने का आंदोलन छेड़ेंगे।
बड़ी खाटू रेलवे स्टेशन को हक मिलने तक जारी रहेगा आंदोलन
ग्रामीणों ने बताया कि अब बड़ी खाटू रेलवे स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर चल रहा यह धरना स्थानीय जनता के हक और अधिकारों की लड़ाई बन चुका है.
अब देखना यह होगा कि रेलवे प्रशासन कब तक इस आंदोलन को नजरअंदाज करता है और क्या इस स्टेशन को उसका हक मिल पाता है या नहीं। लेकिन एक बात साफ है, यदि रेलवे जल्द ही कोई निर्णय नहीं लेता, तो यह धरना और भी बड़े स्तर पर फैल सकता है।